20वीं सदीं के शुरुआत में जब समूचे भारत पर ब्रिटिश हुकूमत का राज चल रहा था, उस समय राजस्थान के मारवाड़ इलाके में सामंती ताकतों का हुकुम चलता था, मारवाड़ के किसान,मजदूर, खेतिहर समुदाय कि साक्षरता शून्य के बराबर थीं ,उस समय शिक्षण संस्थान न के बराबर थीं,किसान समुदाय केवल खेत तक ही सीमित था क्योंकि ऊपर से अंग्रेजों का हुकुम चलता था और यहां सामंतों का दबदबा कायम था, इस प्रकार की कठिन परिस्थितियों में से कुछ किसान मसीहाओं का आगे आना और अपनी किसान कम्युनिटी को शिक्षा से रूबरू कराना मतलब कोयले की खानों मे से हीरा निकलना जैसा हो गया था
उस समय पंजाब राज्य के राजस्व मंत्री सर छोटूराम एक किसान समुदाय के भगवान के तौर पर उभर रहे थे जगह जगह जाकर किसान कम्युनिटी को जाग्रत करने की कोशिश कर रहे थे और उनकी एक प्रसिद्ध कहावत है-
"ए भोले किसान किसान बोलना सीख और दुश्मन को पहचान"
उस समय किसान समुदाय का सबसे बड़ा दुश्मन 'अशिक्षा' थीं जो कम्युनिटी को अंधेरे में धकेलने का काम करतीं थीं
इस समय वर्तमान जैसी गंदी राजनीति नहीं थी गांव में रहने वाले सभी एक ही जाति से पहचाने जाते थे 'किसान' सब सुख दुख मे संयोग करते थे
सर छोटूराम जी सन् 1925 मे पुष्कर(अजमेर) मे किसान सम्मेलन को अपने शब्दों में सम्बोधित कर रहे थे-'अशिक्षा ही किसानों का सबसे बड़ा दुश्मन हैं'
ये बात सम्मेलन की भीड़ में बैठे मालानी(BARMER) के क्रांतिकारीवीर चौधरी रामदान जी के कानों में गूंज रही थीं,चौधरी साहब ने उसी समय ठान लिया था कि किसान कम्युनिटी को इस अशिक्षा नामक बिमारी से बाहर निकल कर ही रहूंगा, उसी समय सम्मेलन पूरा होने के बाद वहां सीधे जोधपुर पहुंच गए और जोधपुर के क्रांतिकारीवीर चौधरी गुलाराम जी से इस बारे में मुलाकात की ओर उनके साथ मारवाड़ के मूर्धन्य श्री बलदेव जी मिर्धा जी से मिलने गए और शिक्षा प्रसार के बारे में विचार विमर्श किया
सन् 1926 में बलदेवराम जी मिर्धा जोधपुर के एस.पी. बन गए
इस समय मारवाड़ क्षेत्र के गांवों में कोई स्कूल नहीं थे,शहरी क्षेत्र में कोई एकाध स्कूल हुआ करता था तथा गाँव के लोगों के सामने सबसे बड़ी बाधा बन रही थी शहरों में रहना, इन्ही बाधाओ ने किसान छात्रावासों का रूप ले लिया
जोधपुर में किसान छात्रावास कि स्थापना की तथा धीरे धीरे मारवाड़ के हर शहर में किसान छात्रावासो कि स्थापना होने लगीं
तब मालानी वर्तमान बाङमेर शहर में किसान कम्युनिटी के पास छात्रावास खोलने के लिए जगह नहीं थीं ,चौधरी रामदान जी उस समय रेलवे में गैंगमैन पोस्ट पर कार्यरत थे
वो कहते हैं ना जहां चाह वहां राह बन जाती हैं
कठिन परिस्थितियों के होते हुए बाडमेर शहर में छोटी सी जमीन खरीदी और गांव ढाणियों मे जाकर किसानों को जाग्रत कर रहे थे और बोल रहे थे अपने बच्चों को पढने के लिए भेजो,तब छात्रावास के लिए जमीन तो लेली, रहने के लिए कोई कमरा नहीं था तब कुछ छात्रों को अपने साथ रेलवे क्वार्टर में रखते थे फिर गांव ढाणियों से थोड़ा थोड़ा चंदा लेके आवासीय छात्रावास का निर्माण किया
सन् 1934 मे बाङमेर शहर में किसान बोर्डिंग हाऊस संस्थान कि स्थापना की थीं,केवल 12 किसानों पुत्रों के साथ शुरुआत की थीं और आज सैकड़ो किसान पुत्र अध्धय्यन कर रहे हैं और सैकड़ों किसान पुत्र सिविल सेवा जैसी नौकरियों में सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं और राजनेता के रूप में भी लोग अपनी सेवाएं दे रहे हैं
चौधरी रामदान जी -
"करे हजारों साल तपस्या, मरूधरा मांगे पुत्र महान्
तब जाकर मिलता एक कृषक कृषक रामदान"
15 मार्च 1884 बाङमेर के गांव सरली मे किसान श्री तेजाराम जी डऊकिया के घर जन्म हुआ,बाल्यावस्था कठिन परिस्थितियों में गुजरा, पानी की किल्लत होने से दूर दराज के गाँवो से पानी लाना पङता था, 1898 मे पिताजी का देहावसान हो गया था ,1899 मे भयंकर अकाल पङने कि वजह से अपने भाइयों के साथ सिन्ध कि ओर प्रस्थान कर दिया ,उस समय इस इलाके में रेलवे लाइन का निर्माण कार्य प्रांरभ हुआ था और सयोंगवश इन्हें रेलवे में गैंगमेन पद पर नियुक्ति मिल गई थी अपना ज्ञान,कार्य के प्रति लगन, परिश्रम करते हुए धीरे धीरे पी.डब्ल्यू.आई.पद पर पहुंच गए
मालाणी की रेत पर अपने अमिट निशान छोड़ चुकी इस महान विभूति ने 1940 में गांव-गांव घूमकर चन्दा एकत्रित कर बाड़मेर किसान छात्रावास का निर्माण शुरू कर 1946 में इसे पूर्ण करवाया। जब भी आप गांवों में जाते तो इस बात पर अधिक जोर दिया करते थे कि जब तक तुम अपने लड़के लड़कियों को नहीं पढ़ाओगे तुम्हारा कल्याण नहीं होगा। वे समाज सुधार के कार्यों में बड़ी दिलचस्पी लेते थे और लोगों से कहते थे कि ब्याह शादियों में खर्चा कम करो, व्यसन से दूर रहो, ओसर-मोसर बन्द करो, लड़ाई-झगड़ों से दूर रहो। 1946 मे सेवानिवृत होकर बाड़मेर किसान सभा की स्थापना की और किसानो पर लगाई लाग-बाग प्रथा का विरोध कर आन्दोलन की राह अपनाई। इधर जैसलमेर के डकैतो ने किसानो पर अत्याचार कर आग में घी डालने का काम किया। सन् 1949 मे प. जवाहरलाल नेहरू के जोधपुर आगमन पर आप बलदेवराम मिर्धा के साथ मिलकर किसानो के दुःख दर्द, जुल्मोसितम से उन्हे अवगत कराया। और अन्त में जागीर प्रथा का अन्त करवा कर दम लिया। सन् 1951 मे आप कांग्रेस मे शामिल हुए और सन् 1952 में हिन्दुस्तान के प्रथम आम चुनाव मे आपने गुड़ामालानी क्षेत्र से विधानसभा चुनाव लड़ा परन्तु पराजित हुए। सन् 1956 में आप बाड़मेर तहसील पंचायत से सरपंच निर्वाचित हुए। सन् 1957 मे पुनः आम चुनाव मे गुड़ामालानी क्षेत्र चुनाव लड़कर विधायक चुने गये। उस जमाने मे विधानसभा का चुनाव किसान पुत्र द्वारा जीतना आठवे आश्चर्य से कम नही था। विधायक के रूप 'मृत्यूभोज निषेध' जैसा महत्वपूर्ण कानून पारित करवाया तथा 1962 मे आपने राजनीति से संन्यास ग्रहण कर अपने मंझौले पुत्र गंगाराम चौधरी को अपने मार्गदर्शन मे कांग्रेस टिकट पर विधायक बनाया। चौधरी रामदान जी योगी पुरुष थे, इसलिये 24 अक्टुबर 1963 को योग क्रिया द्वारा ही आपने अपनी नश्वर देह को त्याग दिया। वे मरकर भी अमर हो गये। उनकी इन निःस्वार्थ सेवाओं के कारण ही सम्पूर्ण किसान समाज आपको ईश्वर का अवतार समझते है।
मालाणी के जर्रे जर्रे पर अंकित रहेगा बस एक ही नाम । क्रान्तिवीर, हे रामदान। कृषक पीढी करे सदा तुम्हे प्रणाम ।।
चौधरी रामदान जी के विचार
एक किसान कआ
धर्म है - परिश्रम !
जाति है सरलता !!
कर्म है -परसेवा !!
ए. किसान
तू जाग, अपनी ताकत पहचान ! सफलता तुम्हारे चरण चूमेगी !!
किसान छात्रावास को खड़ा करने में जिन सज्जनों ने अपना पसीना बहाया, उनके योगदान को कभी भूलना नहीं । सदैव उनके प्रति कृतज्ञता के पुष्प अर्पित करें।
मेरे किसान भाइयों,
धर्म और जाति की दीवार तोडो,
अपने बच्चों को पढ़ाऐं, उन्हें स्कूल एवं पोशाल भेजें,
नशे की आदत न डाले, मृत्यु भोज न करें,
कुरीतियां त्यागे ।
याद रखें
शिक्षा के बिना आप कभी आगे न बढ़ पाएगें ।
ये मेरे शब्द, सदैव याद रखना ।
जोधपुर - नागौर के बोर्डिग हाऊस ने
मुझमें एक ललक पैदा की. मैने एक स्वप्न संजोया
बाड़मेर में भी होगा एक किसान छात्रावास !
एक दिन वह स्वप्न साकार हुआ और बाद में विश्वास दृढ होता चला गया।
मुझे आशा है कि आने वाली पीढियां इसे अपने तन-मन-धन से पोषित करेगी.
तभी मेरी आत्मा को शान्ति मिलेगी। (उक्त विचार किसान बोर्डिंग में 0.1.1944 को आयोजित किसान समेलन में व्यक्त किये)
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