National Voice Photo

किसान कौम का त्योहार आखातीज, क्या होता है इस दिन गांवो मे आइए जानते हैं

 भारत एक धार्मिक देश हैं इसमें कई धर्म के लोग रहते हैं हर धर्म में अपने अपने त्योहार होते हैं अपनी रीति रिवाज से मनाते हैं इसी प्रकार कृषि क्षेत्र को लेकर किसान कौम का त्योहार है आखातीज ,इसमें मनाने की हर चीज कृषि से जुड़ी हुई है 


आइए जानते है आखातीज कैसे मनाते हैं और क्यों मनाते हैं 



ये त्योहार विशेष कर किसान कौम के लिए इस बारिश का अनुमान लगाया जाता है, बारिश के लिए विशेष प्रार्थना की जाती है लोग अपने खेत में सुबह जल्दी उठकर सूखी जमीन पर हल चलाते हैं जिससे प्रकृति को ये मैसेज जाता है कि खेतिहर, किसान लोग अपनी फसल उगाने के लिए पूर्ण रूप से तैयार हैं 

यह त्योहार विशेष कर बारिश पर आधारित खेतिहर लोग मनाते हैं इसी दिन अच्छी बारिश के लिए कामना करते हैं 

वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन मनाई जाती हैं इस दिन किसान कौम अपने विभिन्न प्रकार के अन्न की पूजा करते हैं और अपने छोटे बच्चों को बाहर खेत में हल चलाने के प्रेरित करते हैं इसमें खाना भी अलग प्रकार का होता है 


पश्चिम भारत में तो घर में सुबह महिलाएं जल्दी उठ जाती हैं और बाजरा धान को भीगो देती हैं फिर बाजरा को कुटकर, चुल्हे पर बनाया जाता है जो माल बनता है उसको यहां की भाषा में खिच बोला जाता है वो पुरे दिन के लिए एक साथ बनाया जाता है सभी लोग इसमें घी,गुङ डालकर बङे चाव से खाते हैं 



               घर में अन्न कि पूजा की जाती हैं इसकों धान भरने के लिए जो बोरी होती है उस पर अन्न की ढेरियां बनाकर घर में दो जगह रखते हैं एक घर में मुख्य स्थान के आस पास, दूसरी बैठक हाल यानी यहां की भाषा में खुडाल बोलते हैं यहां पर बङे बुजुर्गो रहते हैं यही पर बातचीत होती है इस अन्न की ढेरियां से कामना करते हैं हमारे ज्यादा से ज्यादा फसल हो ,वो पूरे साल भर चले ,घर में धान की कमी नहीं पङे 

   

 इस दिन गांव के सभी लोग एक साथ खेतों में खेलते हैं भाईचारे का संदेश जाता है सभी छोटे, बङे सभी लोग खेलते हैं ज्यादातर लोग सतौलिया खेल खेलते हैं जिसमें दो टीमें होती हैं इसमें खिलाड़ी कि संख्या तय नहीं होती हैं जितने होते है उतने बट जाते हैं निर्णायक की भूमिका गांव के बुजुर्ग लोग निभाते हैं छोटे बच्चे इस खेल को बङे चाव से देखते हैं और आंनद लेते हैं ये त्योहार तीन दिन चलता है तीनों दिन यही प्रक्रिया होती है 

  

 बदलती दुनिया के साथ त्योहार मनाने का रुख भी बदलता है हर त्योहार का आधुनिक स्वरूप आ गया है पर इस किसान कम्युनिटी के त्योहार अभी तक नहीं बदला है पहले की पंरपरा के अनुसार मनाते हैं 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

Close Menu